मुंबई में होगा “युवा संगम”, छात्रों को मिलेगा सांस्कृतिक विरासत से जुड़ने का मौका
पीएमओ की ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ पहल के तहत आईआईएम मुंबई करेगा मेजबानी
मुंबई -- । भारत की विविध संस्कृतियों से छात्रों को जोड़ने के क्रम में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट (आईआईएम) मुंबई ने 26 नवंबर से 6 दिसंबर तक मुंबई में “युवा संगम” का आयोजन किया है, जिसमें सांस्कृतिक आदान-प्रदान के जरिये छात्रों को नये अनुभवों से जुड़ने का मौका मिलेगा। आईआईएम मुंबई युवा संगम के 5वें चरण की मेजबानी कर रहा है जहां छात्र अपने विचारों का आदान-प्रदान कर अनुकरणीय प्रतिभा का प्रदर्शन करेंगे। यह पहल ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ अभियान का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य भारत की विविध संस्कृतियों की गहरी समझ को बढ़ावा देकर राष्ट्रीय एकीकरण को बढ़ावा देना है।
युवा संगम के इस चरण के तहत, आईआईएम मुंबई और आईआईटी भुवनेश्वर अपने-अपने राज्यों, यानि महाराष्ट्र और ओडिशा का प्रतिनिधित्व करेंगे। साथ ही इन राज्यों के छात्रों को विभिन्न सांस्कृतिक गतिविधियों में शामिल होने का मौका मिलेगा। इस कार्यक्रम में ओडिशा का एक प्रतिनिधिमंडल मुंबई आएगा, जो उन्हें महाराष्ट्र की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और परंपराओं से परिचित होगा। साथ ही प्रतिभागियों को प्रामाणिक महाराष्ट्रीयन व्यंजनों का स्वाद चखने का मौका मिलेगा, जिससे राज्य की पाक परंपराओं के बारे में उनकी समझ बढ़ेगी। सप्ताह भर चलने वाले इस कार्यक्रम में सांस्कृतिक संवाद, शिक्षण सत्र और एक्सप्लोरेशन की एक श्रृंखला शामिल की गई है, जिसमें छात्र मुंबई के कुछ ऐतिहासिक स्मारकों का दौरा करेंगे।
छात्रों के समृद्ध अनुभवों के लिये आईआईएम मुंबई और आईआईटी भुवनेश्वर मिलकर काम कर रहे हैं। यह पहल आपसी सम्मान को बढ़ावा देगी, सांस्कृतिक जागरूकता को बढ़ायेगी और महाराष्ट्र और ओडिशा के लोगों के बीच संबंधों को मजबूत करेगी, जिससे एक भारत श्रेष्ठ भारत के बड़े लक्ष्य में योगदान मिलेगा।
कार्यक्रम के बारे में आईआईएम मुंबई के निदेशक प्रो. मनोज कुमार तिवारी ने कहा, “हम युवा संगम के 5वें चरण की मेजबानी करने और छात्रों को सांस्कृतिक आदान-प्रदान में शामिल होने के लिए एक मंच प्रदान को लेकर काफी उत्साहित हैं । यह पहल न केवल भारत की विविध परंपराओं को संरक्षित और बढ़ावा देने में मदद करती है, बल्कि छात्रों को एकता और राष्ट्रीय एकीकरण की भावना से भी जोड़ती है। यह कार्यक्रम छात्रों पर एक स्थायी प्रभाव छोड़ेगा, जिससे उन्हें एकीकृत और विविध भारत के दृष्टिकोण को आगे बढ़ाते हुए महाराष्ट्र की सांस्कृतिक समृद्धि का अनुभव करने और उससे अभिभूत होने का अनूठा अवसर मिलेगा।”